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पैसा,औरत और आज़ादी

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कहानी 1..



  "तुमने एकाउंट से 10,000 रुपए किसलिए निकाले थे? कल मैं पासबुक अपडेट करवा कर लाया तब देखा।"


पुष्पा के चेहरे पर कई भाव ज्वार-भाटे की तरह आए और चले गए।


"वो मैं अपने लिए............ "


"यार, कुछ खर्च किया करो तो बता तो दिया करो। गलती से भी तुम्हारे हाथ में कार्ड पहुँच जाए तो तुरंत ही तुम्हारे खर्चे शुरू हो जाते हैं।"


"अब अपनी ही कमाई का पैसा खर्च करने के लिए भी हाथ पसारो।" पुष्पा धीरे से फुसफुसाई।


"ऐसा कर, ये रख अपना कार्ड और ये पासबुक, अब तू कमा रही है तो तुझमें इतनी समझ भी आ गई है कि मुझे समझा सके।"


जनार्दन कार्ड और पासबुक सविता के मुँह पर फेंकता हुआ बोला।


सपत्नीक जनार्दन फ़ाइल फ़ोटो😘



कहानी 2..



  "तो में मैं इतने जूत बजांगो कि सबरी हेकड़ी भूर जाएगी।"


कलुआ पैर में पहनी चप्पल को हाथ में तलवार की तरह घुमाते हुए बोला।


"मार तू,और कर ही का सके है। पर तोए मैं पैसे नाय दूँगी। घर घर जा के मजूरी करूँ तब जा के जे दो पइसे हाथ में आवै हैं।"


"तो मैं का चोरी डकैती से लाऊँ हूँ?"


"ना करै है चोरी पर जो पइसा कमात है ऊ कौन सा घर खर्चे को देत है। अपने पइसा की तो तू दारू पी जावे है।"


"अब तू बकर बकर ही करैगी के पईसे देगी?"


"ना दूँगी, जो करना है कर..........."


"तो लै फिर....."


कलुआ के हाथ में लगी चप्पल बार बार ऊपर नीचे उठने गिरने लगी। वहीं थोड़ी दूर पर ही खड़ा छः साल का छोटू अपने बाप को बड़े ही ध्यान से देख रहा था। शायद कुछ सीखने की कोशिश में था।



कहानी 3..



  "वहाँ पर कोई गड़बड़ तो ना होगी अम्मा?"


"कोई गड़बड़ ना होगी बेटा, हस्पताल अपनी मुन्नी ताई की जानकारी वालों का है। वो भी अपनी बहू की जाँच वहीं करवा कर लाईं थीं।"


"पर माँजी! मैं कह रही थी कि जाँच की क्या जरूरत......."


"रे तू चुप कर, अम्मा के सामने जबान मत चला, वो सब जाने हैं कि का सही है और का गलत। ऊपर से तूने दो छोरी पहले से मेरी छाती पर चढ़ा रखी हैं।"


"पर मैं भी तो नौकरी कर रही हूँ, एक और लड़की भी हुई तो उसका खर्चा उठा ही.............."


"तू इसके मुँह न लग बेटा। तू बस गाड़ी का इंतजाम देख। छोरी भई तो उसे वहीं गिरवा कर उसी गाड़ी से वापस लौट आवेंगे।"



कहानी 4..



  "आज रहने दो, आज थकान ज्यादा हो रही है।"


"देख रहा हूँ जब से तेरी नौकरी लगी है तेरी नाटकबाजियां ज्यादा ही बढ़ती जा रही है।"


"सुबह घर का सारा काम करके फिर सारा दिन ऑफिस के बाद फिर घर पर आकर सारा काम निपटाना, थकान नहीं होगी क्या?"


"सब समझ रहा हूँ, ऑफिस की थकान.......... ये गुप्ता की वजह से होती होगी?"


"तुम कहना क्या चाहते हो?"


"समझ तो तू भी रही है, इतनी भोली मत बन, मैं जो देख रहा हूँ वही कह रहा हूँ।"


"और क्या देख रहे हो?"


"रहने दे, क्यों मेरा मुँह खुलवा रही है।"


"फिर भी......"


"मेरे तुझे बस स्टॉप छोड़ते ही तू जो उस गुप्ता की गाड़ी में जाकर उससे चिपक जाती है, तू क्या सोचती है मुझे कुछ समझ नहीं आता।"


थकी हारी वंदना बादलों से झाँकती धूप छाँव की तरह अनगिनत आते जाते भावों को चेहरे पर लिए राकेश की तरफ घृणा मिश्रित दृष्टि से एकटक देखती रह गई।



  *ज्ञात आंकड़ों के अनुसार भारत में घरेलू हिंसा की शिकार हुई कुल महिलाओं में हिंसा की शिकार कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत 60% के आसपास है।*

बहुत खूबसूरत हो तुम

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 #घनघोर_इश्क़ 😘❣️


बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम, बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम 

कभी मैं जो कह दूँ मोहब्बत है तुम से 

तो मुझ को ख़ुदारा ग़लत मत समझना 

कि मेरी ज़रूरत हो तुम

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम 


है फूलों की डाली पे बाँहें तुम्हारी 

हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी 

जो काँटे हूँ सब अपने दामन में रख लूँ 

सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी 

नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना 

किसी और से देखो दिल मत लगाना 

कि मेरी अमानत हो तुम 

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम...


बहुत खूबसूरत हो तुम....

बहुत खूबसूरत हो तुम..


जो बनके कली मुस्कुराती है अक्सर

शब-ए-हिज़्र में जो रूलाती है अक्सर

जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे

जो शायर को दे जाए पहलू ग़ज़ल के


छुपाना भी चाहे छुपाई ना जाए

भूलना भी चाहे भुलाई ना जाए

वो पहली मुहब्बत हो तुम


बहुत खूबसूरत हो तुम....

बहुत खूबसूरत हो तुम....


~ताहिर फ़राज

#घनघोर_इश्क़ ❣️

©Janardan Kumar®™


       

                           साभार 

                           

रूढ़िवादी सामाजिक कलंक

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 #रूढ़िवादी...


हरेक रोज सुबह से लेकर शाम तक और शाम से सुबह तक 

एक आवाज़ थी जिसने शाम मेरा पूरा ध्यान खींच रखा था उसकी तरफ,एक तरह से जो चुभ सी गई और मैं कुछ नहीं कर पाया लिखने के सिवा...

बस वही कुछ पंक्तियाँ है.....


क्या वही आवाज़ है यह,जो सदा मुस्कान देती

आज सुबह जाने मुझसे,रूठी रूठी जा रही थी

चेहरे से यूँ लग रहा था,रात भर सोई न होगी

खोई सी जो चल रही थी,टूटी टूटी जा रही थी।


हाँ, वही आवाज़ है यह,जानता हूँ मैं इसे

दूर कुछ घर से खड़ी है,माँ के संग बतिया रही है


"चार महीनों से जो पैर दर्द,उसकी दवा भी ना

रेंगती सी चल रही हूँ,घर को कारज कर रही हूँ

और बच्चों संग,खेती और पशु सम्भालती हूँ

सहने आई हूँ जगत में,सह रही हूँ,रह रही हूँ

कल भी पूरा दिन मजूरी कर बिताया मैंने काकी

शाम को घर आके मैंने अन्न का दाना था खाया

रात को बारह बजे आया भटक कर पति घर में

कुछ कसर बाकी थी,सो भी मार कर उसने चुकाया

मार खा कर ढोल भी बजता,पशु भी चींखते हैं

पर मेरे दुर्भाग्य,मैं तो ऐसा भी कुछ कर न पाई

गोद में बच्ची लिए जो दूध उसको पिलाती थी

सच कहूँ,वह दूध न था,आँसू मेरे पी रही थी..

आई हूँ जब से ब्याह कर,तब से ये ही सुख है मेरे"


"क्या यही संसार है और क्या यही मनुष्यता है?

क्या यही है बेटी बनना,क्या यही है ब्याह रचना?

क्या यही जीवन है मेरा,क्या यहीं पर मौत होगी?"


माँ से कह कर हाल सारा,वह चली फिर अपने घर को,

जहाँ उसके 'देवता' शायद पुनः 'प्रसाद' देंगे.....।


एक स्त्री सब बन सकती है प्रेम में तुम्हारें

वक्त आने पर...

प्रेमिका,

एक अच्छी दोस्त ,

पत्नी,

माँ,

बहन,

बिस्तर पर वेश्या भी...


सारे रिश्ते निभा सकती है..

बस वो विकल्प नहीं बनना चाहती ...कभी.!

और वो पुरुष है उसे हो सकता है प्यार किसी

से भी,उसे पूरा अधिकार है...


किन्तु इस संवाद में उर अब भी मेरा जल रहा है

बहुत पीड़ा हो रही है और फफोले उठ रहे हैं

और मेरे जिन करों को सहानुभूति और प्यार के लिए

 उठनी चाहिए थी,बेबस और लाचार होकर ही सही

 कि इस हाथ ने अब कलम से सन्तुष्टि पाई...।।


#रूढ़िवाद_सामाजिक_कलंक😏  ©जनार्दन✍️



                फोटो साभार इंटरनेट

हरियाली तीज

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आज हरियाली तीज है
 व्रत में, तीज का अर्थ है तीन, "वैक्सिंग मून" चंद्रमा का तीसरा दिन (शुक्ल तृतीया), और हरियाली का अर्थ है हरा-समृद्ध और सुखदायक* "हरा हरा जंगल भरा"  इस दिन राधा-कृष्ण एक झूले पर बैठते हैं,
जो पूरी तरह से जंगल और (या आपके बगीचे) के हरे-भरे पत्तों, मीठे-महक के फूलों और लताओं (सुगंधित माधवी और मालती के लता) से पूरी तरह से बहुत से सजाया जाता है;  सभी भक्तों के सुगंधित हाथों द्वारा रखा गया,, और "प्रिया प्रीतम" "ठाकुर और ठकुराइन" जी को झूला झूलाना चाहिए।*
*हरि हरि बोल*
#जय_श्री_राधे_कृष्ण
#अवम #हरियाली_तीज #हरियालीतीज #सावन #HaryaliTeej 
           

बच्चे पैदा करना क्या आवश्यक है?

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बच्चा पैदा करने के लिए क्या आवश्यक है..??

पुरुष का वीर्य और औरत का गर्भ !!!

लेकिन रुकिए ...सिर्फ गर्भ ???

नहीं... नहीं...!!!

एक ऐसा शरीर जो इस क्रिया के लिए तैयार हो। 
जबकि वीर्य के लिए 13 साल और 70 साल का 
वीर्य भी चलेगा।
लेकिन गर्भाशय का मजबूत होना अति आवश्यक है, 
इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए। 
एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय 
जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार 
माहवारी (Period) आती हो। 
जी हाँ !
वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ
हर महीने बर्दाश्त करती हैं। 
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि 
महावारी (Period) उनका Choice नहीं है। 
यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है। 
वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है, 
कमर लगता है टूट गयी हो, 
पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं, 
लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों, 
दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं। 
ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से 
इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में 
किसी जँग से कम नहीं।

बच्चे को जन्म देते समय 
असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए 
मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों। 
बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द 
सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों।

गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने 
जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते 
उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए 
मानसिक रूप से तैयार हों। 
5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और 
शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो।

गर्भधारण के बाद कुछ 
विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के 
हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवाने की 
हिम्मत रखती हो।
(जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी 
घर को अपने सिर पर उठा लेती थी।) 
प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा, 
दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो। और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो 
गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की 
हिम्मत रखती हों।

अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और 
Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों। कभी कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस 
रखती हों।
जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर 
दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो।
3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं।

एक गर्भ में आने के बाद 
एक स्त्री की यही मनोदशा होती है 
जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये। 
औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है, 
बलिदान है। 
इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह 
तुम्हारे अच्छे-बुरे,पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है।
अरे जो पूजा करने योग्य है जो पूजनीय है 
उसे लोग बस अपनी उपभोग समझते हैं। 
उसके ज़िन्दगी के हर फैसले, 
खुशियों और धारणाओं पर 
 अपना अँकुश रख कर खुद को मर्द समझते हैं। 
इस घटिया मर्दानगी पर अगर इतना ही घमण्ड है 
तो बस एक दिन खुद को उनकी जगह रख कर देखें
अगर ये दो कौड़ी की मर्दानगी 
बिखर कर चकनाचूर न हो जाये तो कहना।
याद रखें 
जो औरतों की इज्ज़त करना नहीं जानते
वो कभी मर्द हो ही नहीं सकते।
                  
                      साभार इंटरनेट

               ©जनार्दन®™





साइकिल की दास्तां

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"बचपन में साइकिल सीखने का अनुभव"

यह दौर था हमारे साइकिल सीखने का और हमारे जमाने में साइकिल दो चरणों में सीखी जाती थी पहला चरण कैंची(फ्रेम के बीच में पैर घुसाकर खट-खट करके अर्धचक्रीय पैडल मारना) और दूसरा चरण गद्दी पर.......

तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस बाबा,काका या ताऊ चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई चौबीस इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना मुनासिब नहीं होता था।

"कैंची" (फ्रेम के बीच) वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे ।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना सीना तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और "क्लींङ क्लींङ" करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें की छोरा साईकिल दौड़ा रहा है ।

आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हें नही पता की आठ दस साल की उमर में चौबीस इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था।

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए है तथा नाक भी छिला है और गज़ब की बात ये है कि तब दरद भी नही होता था, गिरने के बाद चारों तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ पेंट पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल इजाद कर ली गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में ।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं ।

इधर से चक्की तक साइकिल लुढ़काते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए !

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।

और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी ।

हम आदम की दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना दो चरणों में सीखा !

पहला चरण कैंची (खट-खट करके)
दूसरा चरण गद्दी।
                                                       बसंती

#मेरी_साइकिल_की_दास्तां🚲 #मेरी_बसंती

©जनार्दन®™

अपना गांव

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जिम्मेदारियां मज़बूर कर देती है,
अपना गांव छोड़ने को, वरना कौन अपना गांव में जीना नहीं चाहता।
सौन्दर्य और स्वच्छता से भरपूर आंनद तथा पर्यावरण के प्रति जागरूक,ज़िम्मेवारी की बानगी सुदूर गांव में ही  देखने मिलेगी।

                                 ©जनार्दन®™

बेइंतहा ज़िद्दी प्यार

by
फिर मैंने जाना प्रेम हठी है एकदम तुम्हारे जैसा। जो चाह ले हर हाल में हासिल। तुम कहते थे न प्रेम में तुमको हासिल का कोई सरोकार नहीं है? देखो न ये फूल भी पीला है,कांटो से भरा पीला प्रेम। ये है हासिल,और ये कांटे हासिल की चाह। देखो ना चाह के बीच हासिल शीर्ष पर चमक रहा। जैसे तुम प्रेम की सौम्यता के विपरीत परिस्थितियों का मिज़ाज जैसा। बेइंतहा जिद्दी,अकड़ू

                             😚❣️ #घनघोर_इश्क़

मेले में

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#मेले_में_एक_दिन

गर्मी की रात थी। बादल रह-रहकर उमड़ते थे लेकिन बरसते न थे। लड़के ने अपनी कलाई में उलझी डेढ़ सौ रुपये वाली घड़ी में देखा,दस बजने में दस मिनट कम हैं। घर से चाल ऐसी बढ़ाई कि हाँफता लड़खड़ाता हुआ सीधे मेले में आकर रुका ।

वो लड़की भी यहीं आकर रुकी। एम.ए में पढ़ने वाला दुबला सा ये लड़का,रोज़ दस बजे यहीं आकर खड़ा होता था। लड़की रोज गोलगप्पे खाती,लड़का रोज उसे खाते हुए देखता। दोनों एक दूसरे को देखते,कभी-कभी नहीं भी देखते।


लड़की जिस दिन लड़के को देख लेती,लड़का उस दिन गाना गाता,कभी घाटों पर पतंग उड़ाता,तो कभी तैरकर गंगा पार चला जाता। जिस दिन न देखती,मुंह लटकाए, कभी मुंशी घाट,तो कभी चौसट्टी घाट पर देर तक बैठा रहता।

एक हफ्ते बाद की बात है। लड़की गोलगप्पे खा रही थी,लड़का दूर खड़ा होकर तिरछी नज़रों से लड़की को देखे जा रहा था। लड़की की सहेली ने धीरे से उसके कान में कहा, “वो लड़का तुमको इतना देखता क्यों है जी ! चक्कर चला रही हो क्या” ?

लड़की लज़ाकर बांस के कोइन की तरह झुक गई, मुँह से निकला, “बक्क ! पगला गई हो का ? हम का जानें”। फिर तो सहेली के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान तैर गई,शरारत भरे स्वर से कह दिया,” पक्का भक्त हो गया है लड़का..रोज़ साँझ को अपनी शीतला मैया के दर्शन करने चला आता है।”

लड़की इस बात पर इतना हँसी कि बस हँसती ही रह गई.. लड़का उसे हँसते हुए देखा कि बस देखता ही रह गया !

और अगले ही पल मारे ख़ुशी के ऐसा दौड़ा,मानों आज पतंग के साथ खुद भी उड़ना हो। आज तैरना नहीं,गंगा जी के साथ रात भर बहना हो। बाँहों से ही नाप लेना हो,चौरासी घाटों की सारी चौहद्दी,..पैदल ही चल देना हो,अस्सी घाट से राजघाट।

कहते हैं एक रात लड़की अकेली थी। ठेले के आस-पास चाट और गोलगप्पे खानें वालों की भारी भीड़ जमा हो गई थी।


इधर रात भर ‘घातक” और “दिलवाले” देखकर पुश-अप करने वाले लड़के में न जाने कौन सी ऊर्जा का संचार हुआ था कि उसने चाट के ठेले के पास जाकर धीरे से लड़की से कहा, “सुनों न,होली से चार महीने हो गए आज। अब नाम बतावोगी अपना ? या कहो तो हम भी एक गोलगप्पे की दुकान खोल लें!

लड़की लज़ा गई.. मुँह से निकला,”धत्त”।

आधा गोलगप्पा मुँह में रहा,आधा बाहर..जल्दी-जल्दी ऐसे भगी कि मानों अब भगेगी नहीं तो बारिश में भीग जाएगी।

लड़का डर गया, मानों भारी गलती हो गई हो। वायरिंग चल रही हो और बिजली का तार गड़बड़ जुड़ गया हो। बीजगणित के लंबे सवाल हल करते-करते उत्तर के ठीक पहले प्लस का माइनस हो गया हो।

लड़का उदास हो गया।

अगले दिन लड़के ने फिर हिम्मत की।मिथुन चक्रवर्ती की तीन फिल्में देखीं,आशिक़ी के चार गाने सुनें,बाल कटवा लिया,कपड़े इश्तरी कर लिए,पिचके गालों में पॉउडर लगा लिया,बालों में तेरह बार कंघी करके लड़की के पास जाकर धीरे से कहा, “बता दो न जी,अरे! बस नाम ही तो पूछ रहे हैं.. ” ?

लड़की ने मुँह झुकाकर,बालों की चोटी पकड़कर धीरे से कहा, “उमा”

लड़के के मुँह से निकला.. “उफ्फ!

“क्या हुआ” ? लड़की ने भौंहें खींचकर पूछा।

“अब तो पक्का सुगर हो जाएगा मुझे” लड़के ने मुँह घुमाकर कहा।

लड़की ठठाकर हँसने लगी..लड़का भी खिलखिला उठा..

गोलगप्पे वाले ने कहा, “और खट्टा करें ? लड़की ने सर हिलाकर कहा, “उहुँ,थोड़ा सा तीखा”

इस संवाद के बाद कुछ देर तक शांति रही। न लड़के की हिम्मत होती कि और कुछ बोले, न लड़की को समझ में आता की घर जाए कि रुकी रहे।

लड़के ने एक बार फिर हिम्मत बांधकर कहा, “एक बात बोलें”

“बोलो क्या कहते हो ?…” लड़की ने पूछा

खिसिया जावोगी तब ?

“नहीं खिसियाएँगे,जल्दी बोलो, वरना बाऊ देख लिए तो न तुम देखने लायक रह जावोगे,न हम खिसियाने लायक”

लड़का हँसा… मुँह से निकला, “अच्छा”

बोलो

“ए उमा”

क्या बोलो..

“एक बार और हँसो न,पहले जैसा”?

ये सुनते ही लड़की की बड़ी-बड़ी आँखे मारे शर्म के सिकुड़ गईं गईं..सुर्ख लाल होठ सील से गए। मुँह से निकला, “धत्त बेवकूफ हो क्या,ऐसा होता है क्या कहीं? हम उसमें के नहीं हैं..जैसा तुम समझ रहे हो,समझे “?

लड़के ने कॉलर सीधा करके कहा, “हम कहाँ उसमें के हैं ? की हम तुमसे बियाह करने की जिद्द कर रहे ?तुमको देखे थे हम सरस्वती पूजा के समय.. बुआ के साथ आई थी न?

लड़की ने सर झुकाकर कहा, “हूँ”

“तो तभी से तुमको देखना अच्छा लगता है। हम चार महीने से रोज चार बजे तुम्हारा चार चक्कर लगाते हैं समझी ? गोलगप्पे ही खावो,भाव फिर कभी खा लेना “. लड़के नें आंखें चमकाकर कहा।

लड़की कुछ न बोली..दुपट्टे से जल्दी-जल्दी मुँह बाँधा। गोलगप्पे वाले को पैसे भी न दिए,सीधे साइकिल उठाया,पैडल दबाया औऱ हँसते हुए,शरमाते हुए चलती बनीं।


फ़िर तो अगले दिन से एक हफ़्ते फिर यही प्रक्रिया चली। कभी लड़की लजाकर भाग जाती,कभी लड़का। दोनों की बात कभी पूरी न हो पाती…

लड़का वही सवाल रोज़ पूछता, ” ए उमा आज गोलगप्पे ही खाना है कि भाव भी खाना है ?

लड़की खिसियानी बिल्ली जैसी आंखें चमकाकर चल देती.. लड़का देर तक हँसता रह जाता..दूर जाकर लड़की भी खूब हँसती।

एक दिन फिर लड़के ने कहा, “ए उमा…एक बात बोलें..

लड़की ने कहा, “बोलो”

आज लौंगलता खा लो न ?

” क्यों खा लें लौंगलता?”

“उल्लू हो क्या ? हमको मीठा एकदम पसंद नहीं,हमको बस तीखा और खट्टा अच्छा लगता है”

लेकिन असल में तो उसे पास्ता खाने को दिल मचल रहा था, लेकिन काफी जद्दोजहद के बाद भी पास्ता नहीं मिला, फिर बात आकर चाऊमिन पर रुकी।
लड़के ने कहा, “ए उमा नाम तो तुम्हारा इतना मीठा है,जैसे खोवा गली में पेड़ा बन रहा हो..बात करती हो तो लगता है कचौड़ी गली में जलेबी छन रही हो। मुस्कराती हो तो लगता है केशव पान का आखिरी बीड़ा लगा रहें हों,ख़ामोश होती हो तो लगता है विश्वनाथ गली में मखनिया उत्तपम बन रहा हो। चलती हो तो लगता है भांग वाली ठंडई छन रही हो।

और ये तुम्हारी आँखें…ये आंखे तुम्हारी लौंगलता में धँसे लौंग जैसी ही तो हैं..खा लो न ? बस एक लौंगलता खाने से क्या बिगड़ जाएगा ?

लड़की इतना सुनकर शरमाई…आँखे तरेरकर कहा,”बहुत बेशर्म हो तुम,शर्म नहीं आती.. इतने सुंदर नहीं हैं हम।

लड़के ने फिर कहा, “अच्छा ठीक है लेकिन खा तो लो “

“क्यों खा लें बोलो..कह तो दिया मीठा पसन्द नहीं है।” लड़की ने मुँह बनाकर पूछा।

लड़के ने धीमी आवाज़ में कहा,”क्या कहूँ,मुझे तुमको खाते हुए देखना अच्छा लगता है,और क्या ? मैं चाहता हूँ कभी तुमको अपने हाथ से खिलाऊं.. तुम खाते हुए कितनी अच्छी लगती हो पता है ?

लड़की हँसने लगी, “बड़े वाले बेवकूफ हो तुम.. फ़िल्म कम देखा करो समझे,ये सब फिल्मों में होता है।”

इस जवाब के बाद फिर कुछ देर खामोशी रही..दोनों देर तक इधर-उधर झांकते रहे.. गाड़ियां आ रहीं थीं,जा रहीं थीं। दोनों देर तक गुम रहे। तन्द्रा टूटी तो लड़की ने कहा,”वैसे मुझे मीठा एकदम पसंद नहीं,वरना हिम्मत जरूर करती”


लड़के ने फिर कहा,”अच्छा तब टमाटर चाट खावोगी ? वो तो खा सकती हो”!

लड़की की आँखें चमक गईं, कौतुक वश पूछा, “कहाँ” ?

“काशी चाट भण्डार पर” लड़का उत्साह से बोला।

“भक्क वहाँ बहुत महंगा है…इतनी भीड़ होती है। कोई देख ले तो बड़का आफ़त। घर से पाँच रुपये ही मिलते हैं। एक प्लेट का हम जितना ऊहाँ देंगे,उतने में हम इहाँ पाँच दिन गोलगप्पे खाएंगे..

लड़के ने कहा, “चलो न हम हैं न,हम पैसा देंगे..”

“अच्छा जी,शक्ल देखे हो अपनी,विश्वनाथ गली में खड़े होकर भीख मांगों तो एक रुपये न मिलें..” लड़की ने दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।

लड़का ताली बजाकर हँसा, “ए उमा भिखारी तो हम हो ही गए हैं,एक हफ़्ते से पैदल चलकर रोज पाँच रुपया बचा रहे कि एक दिन तुमको अपने हाथ से खिलाएंगे..और तुम हो कि समझती नहीं।

लड़की ने मुँह बनाकर कहा,”हमें नहीं खाना,तुम समझो और जावो यहाँ से,देर हो रही।”

फिर तो लड़का उस दिन उदास हो गया..मानों उसकी मासूम भावनाओं की हत्या हो गई हो.. शीशे के सामने देर तक खुद को देखता रहा.. सारे ग़म के गाने सुन डाले.. सरस सलिल और मनोहर कहानियां पढ़-पढ़कर खत्म कर दिया…खुद से पूछा, “क्या भिखारी लगता हूँ मैं”? नहीं न.

लड़के ने सोच लिया कि अब न जाऊँगा कभी, पापा की दुकान पर काम करूंगा तो चार पैसे मांगने लायक तो रहूँगा।चार महीने में तो पत्थर पिघल जाते और इन महारानी के नखड़े हैं कि कम होने का नाम नहीं लेते।

कहते हैं लड़के ने चार बजे जाना बंद कर दिया..अब वो दिन भर काम करता,रात भर पढ़ाई..बाप से लेकर चाचा तक सब हैरान की इसे हुआ क्या है।

दस दिन बाद की बात है..छुट्टी का दिन था। दिन के तीन बज रहे थे…लड़का मुँह बनाए साइकिल पर अपनी दुकान का सामान लिए चौक से गोदौलिया आ रहा था कि तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी..

“सुनों..”

वही जानी-पहचानी सी आवाज़,लड़के के कान में मिसरी सी घुल गई..मन की कड़वाहट मिट गई,

पीछे देखा तो कोई सर झुकाए आवाज़ आ रही है।

“ठीक है खा लेंगे लौंगलता.. चलो..”पर तुमने आना क्यों छोड़ दिया..इतना भाव खाना जरूरी था ? लड़की हूँ मैं समझ नहीं आता कुछ ? मेरी भी मजबूरियाँ हैं।

लड़के ने अनमने मन से कहा, “ठीक है जावो हम कहाँ जबरदस्ती कर रहे।”

लड़की मुस्कराई..शरारती स्वर में कहा, “अब मुझे भाव ख़िलावोगे या टमाटर चाट..?”

लड़का हंसा

कुछ देर में दोनों गोदौलिया चौराहे और गिरजाघर के बीच बनी एक पचास साल पुरानी चाट की दुकान पर बने ऊपरी कमरे में आमने सामने डरते-सकुचाते बैठ गए।

सामने तवे पर टमाटर चाट की सोंधी खुश्बू तैरने लगी धनिया,जीरा,मसाला,अदरक,देशी,घी,चाशनी,नींबू,धनिया पत्ता,नमकीन,टमाटर का रस,पोस्ता दाना और काजू की महक से समूचा गोदौलिया महक उठा।

लड़के ने गिलास में पानी भरा..और लड़की ने मुँह में।

तभी चाट का कुल्हड़ हाज़िर..

लड़की ने कहा, “तुम खावो पहले..”
लड़के ने कहा, “नहीं तुम”

पाँच मिनट तक,”पहले तुम,तो पहले तुम” होता रहा।

तंग आकर लड़के ने चम्मच उठाई और धीरे से उठाकर लड़की के मुँह से सटा दिया।

लड़की शरम के मारे झुक गई।

लड़के ने पूछा, “ये तीखा और खट्टा लग रहा न” ?
लड़की ने कहा नहीं,…”बहुत मीठा”

लड़का हँसा.. “सही में मीठा ? झूठ न बोलो..ये तो तीखा और बहुत खट्टा है।

लड़की ने नज़रे नीची करके कहा,”नहीं आज बहुत मीठा है कसम से।”

लड़का हँसा.. और टोपी सीधी करके लड़की के हाथ पर हाथ रखकर बोला..

” पगली, एक बात जानती हो..

लड़की ने पूछा, “क्या” “

“अरे! कुछ भी खट्टा और तीखा क्यों न हो,प्यार में सब कुछ मीठा हो जाता है।”

लड़की हँसी कि हँसती रह गई..लड़के ने घड़ी देखी.. तब ठीक बारह बज रहे थे।

कहते है सीजन की पहली बारिश उसी रात दस बजे हुई। प्रेम में भीगे दो मन ऐसे सकुचाए कि आज भी रात दस बजे चाऊमिन और टमाटर चाट का स्वाद खट्टा और मीठा दोनों लगता है।


                      #घनघोर_इश्क़❣️

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